अधीनस्थ न्यायपालिका के कर्मचारी आज तक न्यायपालिका में अपने अस्तित्व की तलाश की जद्दोजहद में है। हम कार्य करते है न्यायपालिका में समस्त न्यायिक कार्यों को हमारे ही हाथो से गुजरना है न्यायपालिका में लंबित निर्णीत प्रत्येक पत्रावली के प्रत्येक पन्ने की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है हमारे हस्तलेख ही भरे पड़े है इन न्यायिक पत्रावलियों पर इनके हर कागज और उस पर लिखे हर शब्द की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी ही है। यदि किसी भी पत्रावली पर लिखे किसी भी शब्द में कुछ कटिंग हो जाय या कोई शब्द बढ़ जाय तो उसकी भी जिम्मेदारी हम कर्मचारियों की ही होती है और किसी भी ऐसी घटना पर उसकी जांच हमारे ही विरूद्ध होती है। अधीनस्थ न्यायपालिका में लंबित प्रत्येक पत्रावली के कस्टोडियन हम ही हैं हम जिम्मेदार तो है ही साथ ही जवाबदेह भी और हमारी पीढ़ियों ने यह जिम्मेदारी उठाई है और आगे भी यह जिम्मेदारी और जवाबदेही हम उठाते भी रहेंगे। प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग ने हमारे कार्यों की सराहना करते हुए हमें अधीनस्थ न्यायपालिका की रीढ़ तक कह दिया हमारी कार्यशैली यह है कि इस शताब्दी में हमारे संगठन ने आज तक हड़ताल जैसी घोषणा नहीं की और जनजन तक न्याय की अविरल धारा पहुंचाने में अपना योगदान किया। लेकिन इतना सब होने के बाद भी जब अपना विधिक अस्तित्व तलाशते है तो हमारी विधिक स्थिति है कि हम गैर न्यायिक कर्मी की परिभाषा से परिभाषित किए जाते है आखिर यह व्यवस्था हमें गैर भी कहती है और न्यायिक कार्यों के निष्पादन में कई विधिक कार्य भी हमसे ही जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ लेती है यह कितनी बड़ी विडम्बना है पूरे राष्ट्र में कोई भी विभाग अपने कर्मचारियों को गैर शब्द से संबोधित नहीं करती लेकिन अधीनस्थ न्यायपालिका के कर्मचारियों के साथ यह संबोधन और प्रास्थिति प्रयुक्त होती है। हम प्रयास में है कि पूरे देश में अधीनस्थ न्यायपालिका के कर्मचारीगण के समान वेतनमान एवं समान सेवा शर्तों के लिए अखिल भारतीय न्यायिक कर्मचारी महासंघ की तरफ से माननीय उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत याचिका स्वीकार हो और तब जो आयोग बनेगा वहां हम इस गैर शब्द को भी हटाने का प्रयास करेंगे लेकिन तब तक हमें अधीनस्थ न्यायपालिका में अपना अस्तित्व तलाशना होगा।
जय संघ!
(नरेन्द्र विक्रम सिंह)
प्रांतीय महासचिव
दीवानी न्यायालय कर्मचारी संघ उ0प्र0