‘‘कर्मचारी एकता’’ शब्द है जो सुनने में काफी अच्छा लगता है लेकिन दीवानी न्यायालय कर्मचारियों में यह
शब्द कितना प्रभावी और
सार्थक है इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है। ऐसा कहा जा सकता है कि न्यायालयों के कर्मचारियों की
अधिकांश ऐसी समस्याएं है
जो प्रशासनिक स्तर से नही बल्कि अपने ही बीच के कुछ अतिबुद्धिजीवि कर्मचारियों द्वारा पद का दुरूपयोग,
वर्चस्व की लडाई, आपसी
द्वेष व दूसरे की अपेक्षा अपने को प्रभावशाली सिद्ध करने के लिए अपने साथियों के लिए ही खड़ी कर दी जाती
हैं। दीवानी कर्मचारी
आपस में ही अपने आप को प्रभावशाली सिद्ध करने व एकाधिकार कायम रखने की होड़ जैसी गम्भीर समस्याओं से
पीड़ित हैं। द्वेष भावना,
पदों का दुरूपयोग, किसी विशेष कोर्ट में किसी पद पर वर्षों से एकाधिकार और अपने ही कर्मचारियों द्वारा
शोषण एवं व्यथित करने
जैसी समस्याओं का प्रमाण अथवा उदाहरण देने की आवश्यकता नही हैं ऐसी समस्याओं से हम सभी भली भांति परिचित
हैं।
जनपद न्यायालय के कर्मचारियों में ‘‘कर्मचारी एकता’’ के स्थान पर ‘‘स्वार्थपरकता’’ का चलन बढ़ता जा रहा
है। ‘‘स्वार्थपरकता’’
जनपद स्तर पर ‘‘कर्मचारी एकता’’ में सबसे बड़ा बाधक बनकर हम सभी के समक्ष मजबूती से खड़ा है। हम सभी
कर्मचारियों को अपनी
मानसिकता में अच्छे से घोल लेना चाहिए कि हम सब आपस में एक परिवार जैसे हैं जाति-पाति, धर्म-मजहब चाहे
जो भी हो लेकिन
न्यायालय में प्रवेश करने के बाद हम सभी केवल ‘‘न्यायकर्मी’’ है, हम सभी का धर्म ‘‘न्याय’’ है और
न्यायिक कार्यों को सुगमता
से संपादित करवाना हम सभी का कर्तव्य। जब तक जनपद न्यायालय के प्रत्येक कर्मचारियों के अर्न्तमन में ऐसी
भावना विकसित नहीं
होगी तब तक न्यायकर्मी ऐसी तमाम छोटी-छोटी समस्याओं से जूझते रहेंगे जो उन्हे कभी होनी ही नही चाहिए थी।
हम सभी को दृढ़
संकल्पित होना चाहिए कि किसी भी साथी कर्मचारी के कार्य में सहभागी बनने की चेष्टा करेगें, बाधक बनने की
नही।
जब किसी जनपद का कोई कर्मचारी कहता है कि ‘‘कचेहरी का माहौल बहुत खराब है’’ तो अनायास ही एक शब्द दिमाग
पर कौंध जाता है कि
आखिर ये खराब माहौल बनाने लोग कहां से आते हैं ? आखिर ये माहौल हमसे और आप से ही तो बनता है ! तनिक
विचार कीजिए अगर हम में
से हर एक व्यक्ति आपसी सदभाव और सहयोग की भावना को जागृत कर ले और अपने-अपने हिस्से की नैतिक
जिम्मेदारियों का निर्वहन करना
शुरू कर दे तब माहौल कैसा होगा ? हम और आप अगर अपने साथी कर्मचारी के किसी समस्या का समाधान नही बन सकते
तो किसी साथी की
समस्या का कारण भी न बनकर आपसी सहयोग की मिसाल बना सकते हैं, साथ ही दीवानी न्यायालय कर्मचारियों की
सेवा के मुश्किल सफर को
काफी हद तक सहज व सरल कर सकते हैं।
आपसी मतभेदों से होने वाली समस्याओं से उपर उठ कर देखें तो वैसे भी न्यायकर्मियों पर समस्याओं का अम्बार
है जिसका विस्तार
जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक सभी को स्पष्ट है। जिला एवं प्रदेश स्तर की अन्य समस्याओं का भी
निराकरण तभी सम्भव है जब
हम सभी आपसी मतभेदों को भूलकर, सहयोग की भावना आपस में संगठित होकर अपने जिले की यूनियन और प्रदेश संघ
के साथ मजबूती से कदम
से कदम मिलाकर चलेगें।
याद रखिए संगठन की शक्ति ही सर्वोत्कृष्ट शक्ति है जब तक व्यक्ति किसी समुदाय या संगठन में रहता है तभी
तक उसका अस्तित्व है
संगठन के बाहर होने पर व्यक्ति का पतन निश्चित है। संगठन की शक्ति में ही ‘‘कर्मचारी एकता’’ और
‘‘कर्मचारी हित’’ जैसे शब्द
निहित हैं। हमेशा याद रखिए ‘‘एकता का दुर्ग इतना सुरक्षित होता है कि इसके भीतर रहने वाले कभी भी दुःखी
नही होते हैं।’’
इसलिए आपसी प्रेम को जागृत कीजिए, संगठित रहिए, सुरक्षित रहिए।
कर्मचारी एकता जिन्दाबाद।
जय संघ !
(भागवत शुक्ल)
प्रांतीय संयुक्त सचिव
दीवानी न्यायालय कर्मचारी संघ, (उ0प्र0)