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20 जुलाई 2021

शंखनाद

प्रत्यक्ष हो या न हो, हम न्याय व्यवस्था के संचालक हैं।
अधिवक्ता और अधिकारी के मध्य स्थित सहायक हैं।
जो गिन ना सके उन पन्नों के संरक्षक कार्यपालक हैं।
प्रांरभ हमी हैं, अंत भी हम हैं,
न्यायपालिका के स्तंभ भी हैं।
त्वरित हम हैं विलम्ब भी हम हैं,
न्याय की शक्ति के परिचायक भी हम हैं।
किन्तु
क्यों बोध कराया जाता है, किरदार हमारा सौतेला।
हर कर्म हमारे अर्जुन के, और नाम कर्ण का बतलाया।
बैल कोल्हू का हमसे अच्छा है, अधिकार तो उसका सच्चा है।
ना सीमित होता कार्य हमारे, ना ही समय की सीमा तय हैं।
तय कर दिये हैं लांछन सारे, दोष और मिथ्या सारे।
जूझ-जूझ कर घटते रहते जीवन के सारे पल हमारे।
सन्नाटा भी शोर लगता है,
जब परिवार खड़ा दूसरी ओर लगता है।
भौतिकता की इस दुनिया में, तानों का अंबार लगा है।
अर्जित क्या करते है, और व्यय कैसे होता है।
इसी दुविधा में हर रोज हमारा परिवार पड़ा है।
आज नही तो कल बदलेगा, समय बड़ा बलवान है।
हर खाई पाटी जाएगी, कोई क्षितिज अछूता न होगा।
न्याय के इस मंदिर में, इस न्यायदूत का भी सम्मान है।
वे समय ज्यादा दूर नही, समय बड़ा बलवान है।

(अभिषेक श्रीवास्तव)
वरिष्ठ सहायक
जनपद न्यायालय, गोरखपुर

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न्यायिक कर्मचारी के परिप्रेक्ष्य में
‘कर्मचारी एकता’ शब्द की समीक्षा

(भागवत शुक्ल)

‘कर्मचारी एकता’’ शब्द है जो सुनने में काफी अच्छा लगता है लेकिन दीवानी न्यायालय कर्मचारियों में यह शब्द कितना प्रभावी और सार्थक है इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है।

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अस्तित्व की तलाश में

(नरेन्द्र विक्रम सिंह)

अधीनस्थ न्यायपालिका के कर्मचारी आज तक न्यायपालिका में अपने अस्तित्व की तलाश की जद्दोजहद में है। हम कार्य करते है न्यायपालिका में समस्त न्यायिक कार्यों को हमारे ही हाथो से गुजरना है।

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हौसले बुलंद होंगे तो बुलंदी मिलती है

(अभिषेक सिंह)

दोस्तों हमें लगता है कि कोई आएगा और हमारी सारी समस्याओं का समाधान कर देगा यही विचार हम अपने कार्य क्षेत्र के विषय में भी सोचते हैं और चाहते हैं कि कोई आगे बढ़कर हमारी समस्याओं का समाधान करे।

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संगठन शक्ति है ‘‘संघे शक्ति कलयुगे’’

(सै0 मोहम्मद ताहा)

भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका जैसे महत्वपूर्ण स्तम्भ के नींव के पत्थर के रूप में हम सभी का योगदान आम जनता को सुलभ न्याय दिलवाने में कम नही है। अधीनस्थ न्यायालय कर्मचारियों के अथक प्रयास से देश

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शंखनाद

(अभिषेक श्रीवास्तव)

प्रत्यक्ष हो या न हो, हम न्याय व्यवस्था के संचालक हैं।
अधिवक्ता और अधिकारी के मध्य स्थित सहायक हैं।
जो गिन ना सके उन पन्नों के संरक्षक कार्यपालक हैं।

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(वर्तमान में निष्कपट मेहनती एवं मन और हृदय से सीधे साधे मजदूर/श्रमिक वर्ग की वर्तमान समाजिक परिस्थितियों एवं उसके अधिकारो तथा सम्मान का हनन के सम्बन्ध में एक मजदूर/श्रमिक की पीड़ा)

(विवेक कुमार)

हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै.....
पत्थर तो बहुत तोड़े हैं मैने पर कभी किसी पर फेंका नहीं, सड़के तो बहुत बनायी पर कभी...

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