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20 जुलाई 2021

संगठन शक्ति है ‘‘संघे शक्ति कलयुगे’’

भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका जैसे महत्वपूर्ण स्तम्भ के नींव के पत्थर के रूप में हम सभी का योगदान आम जनता को सुलभ न्याय दिलवाने में कम नही है। अधीनस्थ न्यायालय कर्मचारियों के अथक प्रयास से देष का वादकारी सुलभ न्याय पाने में समर्थ हो पा रहा है।
  साथियों आज के समय की मांग है कि हम सभी अपने क्षुद्र स्वार्थ का त्याग करते हुए बन्धुत्व भावना से ओत-प्रोत होकर एक-दूसरे का सहयोग करके ही अपने उद्देष्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं। प्रायः देखा जा रहा है कि हमारा समाज आपस में अपने क्षुद्र स्वार्थों में उलझ कर अपने ही लोगों से मनोमालिन्वता रखकर एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। यह हमारे संगठन के लिये शुभ संकेत नही बल्कि पूर्णतया घातक है। संगठन को विखंडित करने वाली शक्तियां सक्रिय होकर दमनात्मक स्वरूप में जन्म ले लेती है। जिसके लिये हम आप ही उत्तरदायी है। मैं आहवान करता हूं कि आइए हम सब संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर सुनहरे भविष्य का निमार्ण करें।
  वर्तमान में हमारे कर्मचारी साथी अनेकों समस्याओं से ग्रसित हैं जहां अन्य प्रतिष्ठानों में विषिष्ट सेवा लाभों से कर्मचारियों की स्थिति दिन प्रतिदिन उत्कर्ष की ओर अग्रसर है वहीं हमें मिल रहे सेवा लाभों से शासन की नीतियों के कारण वंचित होना पड़ रहा है। पदोन्नति के अवसरों का नितान्त अभाव है। जबकि इसके प्रतिकूल प्रत्येक कर्मचारी पर कार्य का बोझ दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।
  आइए हम सभी मिलजुल कर स्नेह एवं त्याग की भावना का संचार करते हुए अपने अधिकारों ‘जो कि संविधान द्वारा आच्छादित है’ को सुरक्षित व संरक्षित करते हुए सार्थक दिषा में कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढें। संगठन के छः मूल मंत्र :-

  1. संगठन के लिये लड़ाई करो।
  2. लड़ नही सकते तो लिखो।
  3. लिख नही सकते तो बोलो।
  4. बोल नही सकते तो साथ दो।
  5. साथ नही दे सकते तो जो लिख कर बोल रहे हैं उनका अधिक से अधिक सहयोग करें, संघर्ष के लिये ताकत दें।
  6. यह भी नही कर सकते तो कम से कम संघर्ष करने वालों का मनोबल न गिरायें, क्योंकि कही न कहीं कोई हमारे और आपके हित में आपके हिस्से की लड़ाई भी लड़ रहे हैं।
‘‘निष्चित रूप से यदि आप शहद रूपी परिणाम की चाहत रखते हैं तो संगठन मधुमक्खियों जैसा बनाएं।’’

जय संघ!

( सैय्यद मोहम्मद ताहा )
प्रांतीय उपाध्यक्ष
दीवानी न्यायालय कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश

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न्यायिक कर्मचारी के परिप्रेक्ष्य में
‘कर्मचारी एकता’ शब्द की समीक्षा

(भागवत शुक्ल)

‘कर्मचारी एकता’’ शब्द है जो सुनने में काफी अच्छा लगता है लेकिन दीवानी न्यायालय कर्मचारियों में यह शब्द कितना प्रभावी और सार्थक है इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है।

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अस्तित्व की तलाश में

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अधीनस्थ न्यायपालिका के कर्मचारी आज तक न्यायपालिका में अपने अस्तित्व की तलाश की जद्दोजहद में है। हम कार्य करते है न्यायपालिका में समस्त न्यायिक कार्यों को हमारे ही हाथो से गुजरना है।

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हौसले बुलंद होंगे तो बुलंदी मिलती है

(अभिषेक सिंह)

दोस्तों हमें लगता है कि कोई आएगा और हमारी सारी समस्याओं का समाधान कर देगा यही विचार हम अपने कार्य क्षेत्र के विषय में भी सोचते हैं और चाहते हैं कि कोई आगे बढ़कर हमारी समस्याओं का समाधान करे।

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संगठन शक्ति है ‘‘संघे शक्ति कलयुगे’’

(सै0 मोहम्मद ताहा)

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शंखनाद

(अभिषेक श्रीवास्तव)

प्रत्यक्ष हो या न हो, हम न्याय व्यवस्था के संचालक हैं।
अधिवक्ता और अधिकारी के मध्य स्थित सहायक हैं।
जो गिन ना सके उन पन्नों के संरक्षक कार्यपालक हैं।

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(वर्तमान में निष्कपट मेहनती एवं मन और हृदय से सीधे साधे मजदूर/श्रमिक वर्ग की वर्तमान समाजिक परिस्थितियों एवं उसके अधिकारो तथा सम्मान का हनन के सम्बन्ध में एक मजदूर/श्रमिक की पीड़ा)

(विवेक कुमार)

हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै.....
पत्थर तो बहुत तोड़े हैं मैने पर कभी किसी पर फेंका नहीं, सड़के तो बहुत बनायी पर कभी...

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