हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै.....
पत्थर तो बहुत तोड़े हैं मैने पर कभी किसी पर फेंका नहीं,
सड़के तो बहुत बनायी पर कभी किसी पर कब्जा नहीं किया,
फसलें तो बहुत उगाई पर कभी कोठियो में भर कर न रखा,
ट्रेनों के टिकट तो मैने भी कई खरीदे पर कभी सीटों पर न बैठ पाया,
यूँ तो आये दिन तुम अपने अधिकारों के छीने जाने की दुघाई देते हो
पर मौका मिलते ही खुद मुझसे भी छीन लेते हो,
हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै......
हाँ कभी कभी नंगे तो दोनों के बदन होते है पर मेरी गरीबी दिखाती है
और तुम्हारी अमीरी, हमारा मजबूर होना, तो तुम्हारा माडर्न होना,
तुम्हारे ही आकड़े चीख चीख कर कहती है की हमे पोषण नहीं मिलता
फिर भी अपना पौष्टिक शरीर भी हमसे ही ढुलवाते हो,
हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै..........
यूँ तो सफाई दोनो को पसन्द है तुम्हे भी हमे भी
पर हम सफाई करके भी गंदे कहलाते हैं और तुम गंदगी करके भी साफ,
हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै........
बेशक कारखानों, खेतों सड़को, झुग्गी झोपड़ीयों के अलावा और कहीं रहनें लायक न हों हम,
पर कभीं कभी बहुत काम की चीज हो जाता हूँ मैं, कभी तुम्हारे चैनलो की टीआरपी बढ़ाने,
कभी समाचार पत्रों के हेडिंग, तो कभी नेता जी के भाषणों की शोभा बढ़ा देता हूँ मै,
हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै..........
सच है की पाँच सितारा होटलो में पिज्जा बर्गर नहीं खाता पर झोपड़ी मे माड़ भात ही प्यार से खाता हूँ
मैं
नहीं आती कागज कलम की जदूगरी की एक का चार चार का एक कर पाऊँ मै
तभी कभी कभी सौ का काम करके भी पचास पाता हूँ मैं
हाँ क्योंकि मजदूर हूँ मै..........
वो अलग बात है कि चिन्ता तो दोनो को होती है भरने की पर तुम्हें तिजोरी और मुझे पेट क्योंकि
अनपढ़ हूँ पर ईमानदार हूँ, सीधा हूँ पर सच्चा हूँ, बेशक गरीब हूँ पर चोर नहीं हूँ,
हाँ मजबूर हूँ मै क्योंकि मजदूर हूँ मैं........
विवेक कुमार
(वरिष्ठ सहायक)
जनपद न्यायालय, अमेठी
सम्बद्ध मा0 उच्च न्यायालय